अपने दिल से निबाह कर आये
सबसे रिश्ता तबाह कर आये
चाँद से कब कहा मिलो हमको
चाह करना था चाह कर आये
दर्द शायर ने सुनाया था अभी
लोग भी वाह वाह कर आये
छत कभी दे न सके थे जिनको
हम हथेली की छांह कर आये
ऐसा ज़ज्बात ने भटकाया हमें
अपना चेहरा सिआह कर आये
सोच कर कुछ नहीं हुआ हमसे
जो किया ख्वामख्वाह कर आये
रोज कुछ कम हुई लबों पे हंसी
लोग कैसा गुनाह कर आये
फ़ितरतन दिल फ़कीर होता है
ये जिसे बादशाह कर आये
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