ज़रा आसां ज़रा मुश्किल लगा था
वो हर सूरत में मेरे क़ाबिल लगा था
वो कुरबत में बहुत मासूम निकला
जो सबको दूर से क़ातिल लगा था
हवा, सूरज, ज़मीं थे साथ अपने
मै अपने से बड़ा गाफ़िल लगा था
हमें घर लौट कर राहत अभी है
सफ़र में भी हमारा दिल लगा था
पहुँच के भी कहीं पहुंचे नहीं हम
सफ़र जो था वही मंजिल लगा था
मेरा उससे कोई रिश्ता न निकला
कभी जो रूह में शामिल लगा था
वहीँ एक नींद सो कर लौट आये
नदी के साथ जो साहिल लगा था
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