सोमवार, जुलाई 12, 2010

कोई पहचान बाकी है न अब चेहरा बचा है

कोई पहचान बाकी है न अब चेहरा बचा है
हमारे पास खोने के लिए अब क्या बचा है

ये हंगामा है या रिश्ते मिटा देने की जिद है
हमारे दिल की गहरे में क्या कांटा बचा है

कभी थे लोग जो एहसास सबसे बाँटते थे
कोई भी शख्श अपने दौर में खुद सा बचा है

अगरचे ख़त्म है रिश्ता कभी ऐसे भी आओ
अभी सुनने सुनाने को बहुत किस्सा बचा है

वज़ह है आज भी थोड़ी किसी से दुश्मनी की
अभी भी प्यार करने का मौका बचा है

तुझे जो घर ने ठुकराया है तो बाहर चला आ
हवा में, चाँद तारों में तेरा हिस्सा बचा है

किसे फुर्सत है रुक कर पूछ लेगा हाल तेरा
कोई हो वक़्त सबके पास बस थोडा बचा है

जो शाम आई है अब लौटेंगे यादों के परिंदे
मेरे पहलू में लम्बा सा मेरा साया बचा है

ज़रा फर्क पड़ता है सभी की ज़िन्दगी में
अगर आँखों में कोई एक सपना बचा है

मंगलवार, जून 15, 2010

अपने दिल से निबाह कर आये

अपने दिल से निबाह कर आये
सबसे रिश्ता तबाह कर आये

चाँद से कब कहा मिलो हमको
चाह करना था चाह कर आये

दर्द शायर ने सुनाया था अभी
लोग भी वाह वाह कर आये

छत कभी दे न सके थे जिनको
हम हथेली की छांह कर आये

ऐसा ज़ज्बात ने भटकाया हमें
अपना चेहरा सिआह कर आये

सोच कर कुछ नहीं हुआ हमसे
जो किया ख्वामख्वाह कर आये

रोज कुछ कम हुई लबों पे हंसी
लोग कैसा गुनाह कर आये

फ़ितरतन दिल फ़कीर होता है
ये जिसे बादशाह कर आये

सोमवार, अप्रैल 26, 2010

ज़रा आसां ज़रा मुश्किल लगा था
वो हर सूरत में मेरे क़ाबिल लगा था


वो कुरबत में बहुत मासूम निकला
जो सबको दूर से क़ातिल लगा था


हवा, सूरज, ज़मीं थे साथ अपने
मै अपने से बड़ा गाफ़िल लगा था


हमें घर लौट कर राहत अभी है
सफ़र में भी हमारा दिल लगा था


पहुँच के भी कहीं पहुंचे नहीं हम
सफ़र जो था वही मंजिल लगा था


मेरा उससे कोई रिश्ता न निकला
कभी जो रूह में शामिल लगा था


वहीँ एक नींद सो कर लौट आये
नदी के साथ जो साहिल लगा था
गरचे मर जाने की चाहत न हुई

ज़िन्दगी भी हमें राहत न हुई


घर बनाने का तज़ुर्बा था बहुत

घर में रहना कभी आदत न हुई


इतने जुगनू थे मुख़ातिब हमसे

रात भर रोने की फुर्सत न हुई


उनसे रिश्ता उजड़ गया जब से

मै मुंतज़िर हूँ, क़यामत न हुई


हर कहीं दिल लगा रहा मेरा

मेरी ख़ुद से जो अदावत न हुई


जिसको चाहा उसने उदास किया

हमारे प्यार में बरकत न हुई


लफ्ज़ मेरे थे, रूह किसकी थी

एक ग़ज़ल मेरे बदौलत न हुई

रविवार, अप्रैल 25, 2010

उनसे दुआ सलाम का जो सिलसिला हुआ
थोडा भला हुआ मेरा, ज्यादा बुरा हुआ

माकूल ना हुई कभी दुनिया तो क्या गिला
मेरा लिखा हुआ था जो मुझ-सा कहाँ हुआ

अखबार देख कर कभी अफ़सोस हो तो हो
हम अपने घर में बंद थे जब हादसा हुआ

किन किन घरों में मेरे कई ख़त अत हुए
तुमसे मिला तो मै भी अज़ब बेपता हुआ

तुम ही कहो किसी से था शिकवा मेरा कभी
तुम पर मेरी उम्मीद थी, तुमसे गिला हुआ

हर रोज हादसे नए, हर दिन नै तलाश
हर रोज अपने कद से मै थोडा बड़ा हुआ

वो आसमां से फैसले करता है हमारा
वो है कि नहीं इसका कहाँ फैसला हुआ

शुक्रवार, अप्रैल 23, 2010

किसको फिक्र है?

मुश्किल है परिंदों का बसर किसको फिक्र है
क्यूँ अनमना खडा है शज़र किसको फिक्र है

सूरज की रौशनी से मुतास्सिर है ज़माना
सदियों से जल रहा है अगर किसको फिक्र है

ख्वाबों में घर बना के जिसने उम्र काट दी
वो भीड़ से अलग था मगर किसको फिक्र है

खिड़की खुली थी लोरियां गाकर सुला गईं
है दश्त में हवाओं का घर किसको फिक्र है

जो नेकियाँ मेरी है वो खुदा की देन है
मेरा गुनाह मेरे ही सर किसको फिक्र है

नज़रें चुरा के चल दिए जो हमसफ़र थे लोग
अब राह तकती है नज़र किसको फिक्र है

किसको है इंतज़ार मेरा ज़िन्दगी के पार
ज़ारी है बहरहाल सफ़र किसको फिक्र है

रविवार, जून 10, 2007

दोंनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के-फैज़

दोंनों जहान तेरी मोहब्बत में हार केवो जा रहा है कोई शबे-ग़म गुज़ार के
वीरां है मैकदा ख़ुमो-साग़र उदास हैंतुम क्या गए कि रूठ गए दिन बहार के

इक फुर्सते-गुनाह मिली, वो भी चार दिनदेखे हैं हमने हौसले परवरदिगार के
दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दियातुझ से भी दिलफरेब हैं ग़म रोज़गार के

भूले से मुस्कुरा तो दिये थे वो आज फै़जमत पूछ वलवले दिले-नाकर्दाकार के
हम पर तुम्हारी चाह का इल्जा़म ही तो हैदुश्नाम तो नहीं है ये अक़ाम ही तो है

करते हैं जिसपे तअन कोई जुर्म तो नहींशौके-फिज़ूलो-उल्फ़ते-नाकाम ही तो है
दिल नाउमीद तो नहीं नाकाम ही तो हैलम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है

फैज़