गरचे मर जाने की चाहत न हुई
ज़िन्दगी भी हमें राहत न हुई
घर बनाने का तज़ुर्बा था बहुत
घर में रहना कभी आदत न हुई
इतने जुगनू थे मुख़ातिब हमसे
रात भर रोने की फुर्सत न हुई
उनसे रिश्ता उजड़ गया जब से
मै मुंतज़िर हूँ, क़यामत न हुई
हर कहीं दिल लगा रहा मेरा
मेरी ख़ुद से जो अदावत न हुई
जिसको चाहा उसने उदास किया
हमारे प्यार में बरकत न हुई
लफ्ज़ मेरे थे, रूह किसकी थी
एक ग़ज़ल मेरे बदौलत न हुई
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9 घंटे पहले
3 टिप्पणियां:
"हर कहीं दिल लगा रहा मेरा
मेरी ख़ुद से जो अदावत न हुई"
सार्थक प्रयास - शुभकामनाएं
आप हिंदी में लिखते हैं। अच्छा लगता है। मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं..........हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत हैं.....बधाई स्वीकार करें.....हमारे ब्लॉग पर आकर अपने विचार प्रस्तुत करें.....|
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