सोमवार, अप्रैल 26, 2010

गरचे मर जाने की चाहत न हुई

ज़िन्दगी भी हमें राहत न हुई


घर बनाने का तज़ुर्बा था बहुत

घर में रहना कभी आदत न हुई


इतने जुगनू थे मुख़ातिब हमसे

रात भर रोने की फुर्सत न हुई


उनसे रिश्ता उजड़ गया जब से

मै मुंतज़िर हूँ, क़यामत न हुई


हर कहीं दिल लगा रहा मेरा

मेरी ख़ुद से जो अदावत न हुई


जिसको चाहा उसने उदास किया

हमारे प्यार में बरकत न हुई


लफ्ज़ मेरे थे, रूह किसकी थी

एक ग़ज़ल मेरे बदौलत न हुई

3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

"हर कहीं दिल लगा रहा मेरा
मेरी ख़ुद से जो अदावत न हुई"
सार्थक प्रयास - शुभकामनाएं

Dimple Maheshwari ने कहा…

आप हिंदी में लिखते हैं। अच्छा लगता है। मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं..........हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत हैं.....बधाई स्वीकार करें.....हमारे ब्लॉग पर आकर अपने विचार प्रस्तुत करें.....|

अजय कुमार ने कहा…

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें