रविवार, अप्रैल 25, 2010

उनसे दुआ सलाम का जो सिलसिला हुआ
थोडा भला हुआ मेरा, ज्यादा बुरा हुआ

माकूल ना हुई कभी दुनिया तो क्या गिला
मेरा लिखा हुआ था जो मुझ-सा कहाँ हुआ

अखबार देख कर कभी अफ़सोस हो तो हो
हम अपने घर में बंद थे जब हादसा हुआ

किन किन घरों में मेरे कई ख़त अत हुए
तुमसे मिला तो मै भी अज़ब बेपता हुआ

तुम ही कहो किसी से था शिकवा मेरा कभी
तुम पर मेरी उम्मीद थी, तुमसे गिला हुआ

हर रोज हादसे नए, हर दिन नै तलाश
हर रोज अपने कद से मै थोडा बड़ा हुआ

वो आसमां से फैसले करता है हमारा
वो है कि नहीं इसका कहाँ फैसला हुआ

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