सोमवार, अप्रैल 26, 2010

ज़रा आसां ज़रा मुश्किल लगा था
वो हर सूरत में मेरे क़ाबिल लगा था


वो कुरबत में बहुत मासूम निकला
जो सबको दूर से क़ातिल लगा था


हवा, सूरज, ज़मीं थे साथ अपने
मै अपने से बड़ा गाफ़िल लगा था


हमें घर लौट कर राहत अभी है
सफ़र में भी हमारा दिल लगा था


पहुँच के भी कहीं पहुंचे नहीं हम
सफ़र जो था वही मंजिल लगा था


मेरा उससे कोई रिश्ता न निकला
कभी जो रूह में शामिल लगा था


वहीँ एक नींद सो कर लौट आये
नदी के साथ जो साहिल लगा था

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